ट्रेन यात्रा – एक अनमोल अनुभव

ट्रेन यात्रा – एक अनमोल अनुभव


दोस्तों जिंदगी के अनुभव हमेशा अनमोल होते हैं, इन्ही की बदौलत हम वो सबक सीखते हैं जो किसी किताब, किसी स्कूल और किसी अध्यापक द्वारा नहीं पढ़ाया जाता।

अच्छे अनुभव जहां हमेशा जिंदगी को गुदगुदाते रहते हैं वहीं बुरे या कटु अनुभव आपको सीखने का अनमोल मौका प्रदान करते हैं। मेरे जीवन का एक ऐसा ही रोचक अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूं जिसे याद करके आज भी दिल रोमांचित हो उठता है।

बात काफी पुरानी है। शादी के बाद हमारी पहली दीपावली थी। उन दिनों में श्रीराम होंडा के दिल्ली ऑफिस में कार्यरत था।
दीवाली से करीब 10 दिन पूर्व मुझे ऑफिस के काम से सूरत जाना पड़ा। काम कुछ 2-3 दिन का था। उन दिनों हमें केवल ट्रेन से टूर करना allowed था। सूरत आया था तो वहां से मैंने पत्नी, मां और बहनों के लिए साड़ी इत्यादि भी खरीद ली, और मेरा सूटकेस ऊपर तक लबालब भर गया था और खूब भारी हो गया था।
वो समय ऐसा था कि टिकट बुक करवाने के लिए या तो स्टेशन पर घंटों लाइन लगानी पड़ती थी या फिर एजेंटों का सहारा लेना पड़ता था, कंप्यूटरीकृत आरक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। क्यूंकि टूर अचानक बना था तो वापसी की टिकट कन्फर्म नहीं थी। वेटलिस्ट की ही टिकेट मिल पाई थी। दीवाली की वजह से गाड़ियों में काफी भीड़ भी चल रही थी। आखिर समय पर पता चला कि सीट कन्फर्म नहीं हो पाई है, अत मुझे अपना प्रोग्राम आगे बढ़ाना पड़ा।
अगले दिन हमारे डीलर ने किसी एजेंट से बात की तो उसने दुगने दाम में सीट दिलवाने का भरोसा दिया।
मरता क्या न करता तो reservation करवा ली। अगले दिन की राजधानी में सीट प्राप्त हो गई।
राजधानी एक्सप्रेस रात के करीब 11 बजे सूरत से दिल्ली की ओर पहुंचती है, और सूरत स्टेशन पर मात्र 5 मिनट का ही stop है।
मेरा होटल स्टेशन से कुछ ही दूरी पर था और होटल की van ने मुझे करीब 10.50 पर स्टेशन पर छोड़ दिया। मैंने प्लेटफॉर्म पर जाकर एक कुली से पूछा, कि राजधानी को से प्लेटफॉर्म पर आ रही, वो बोला सामने तो खड़ी है 2 नंबर पर और छुटने ही वाली है। उसकी बात सुन कर मैं हड़बड़ा गया। और ब्रीफकेस लेकर भागा, बड़ी मुश्किल से सीट मिली थी अगर ट्रेन छूट गई तो दीवाली पर कैसे पहुंचूंगा ये सोच कर घबरा गया, और इतने सारे पैसे भी खर्चे थे। पूरे प्लेटफॉर्म पर कहीं भी पुल नहीं दिख रहा था और सामने ट्रेन खड़ी थी जो किसी भी क्षण छूट सकती थी।
भागते हांफते एक कुली से पूछा भाई 2 नंबर पर जाने का रास्ता किधर से है। वो बोला बाहर जाओ वहां से अंडरग्राउंड रास्ता है। हाथ में भारी अटैची लिए मैं बेतहाशा बाहर भागा और दौड़ते हुए दो नंबर प्लेटफार्म पर पहुंचा। जब तक प्लेटफॉर्म पर कदम रखा ट्रेन खिसकने लगी थी। मैं भाग के सामने डब्बे के गेट तक पहुंचा, पर वो तो बंद था। इधर मैं ट्रेन के साथ साथ दौड़ रहा था और दरवाजा पीट रहा था उधर ट्रेन की गति बढ़ती जा रही थी, पर कोई भी दरवाजा नहीं खुल रहा था। भागते भागते मैं और मेरी आशाएं बेदम हो चली थी, फिर भी मैं भाग रहा था इस आशा से कि कोई तो दरवाजा खुला होगा।
अचानक किसी ने मेरी बांह में बाहं डाल के मुझको पकड़ लिया, और ज़ोर से बोला मरना है, क्या जाने दो। मेरी सांसें उखड़ रही थी फिर भी मैंने उसको बोला भाई मेरी ट्रेन छूट रही है। उसने बिना मुझे छोड़े मुझको पूछा कहां जाना है तुमको। मैंने कहा दिल्ली, अरे पागल वो ट्रेन मुंबई जा रही है तुम्हारी ट्रेन 3 नंबर पर आएगी अभी 5 मिनट का समय है। उसकी पूरी बात समझने में मुझे कुछ पल लगे पर जब मुझे उसकी बात समझ आईं तो मैंने उसका कई बार धन्यवाद किया, और साथ ही अपने भाग्य को भी सराहा, अगर कोई दरवाजा खुला होता तो मैं बजाय दिल्ली के मुंबई पहुंच जाता। शुक्र था उस भले मानस का जिसने मुझे सही समय पर रोक लिया।

उस दिन मैंने प्रण लिया कि अब से मैं हमेशा ट्रेन के समय से 15 मिनट पहले ही स्टेशन पहुंच जाऊंगा और पूरी तरह आश्वस्त होकर ही ट्रेन में चढ़ूंगा।

आभार - नवीन पहल - १०.०९.२०२२ ❤️👍🌹🙏😀

# प्रतियोगिता हेतु 

आपके विचारों का इंतजार रहेगा 🙏🙏




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8 Comments

Anjali korde

21-Jul-2023 11:34 AM

Nice post

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Chirag chirag

13-Sep-2022 05:16 PM

Nice post

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Priyanka Rani

12-Sep-2022 04:24 PM

Nice post

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